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रविवार, 20 नवंबर 2011

आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन यादो मे





दोस्तों आपने छोटे छोटे बच्चो को जिन्हें जहा भी जगह मिली वाही सो गए इसी बचपन में खोकर एक बहुत ही सुन्दर कविता में पोस्ट कर रहा हू आप भी देखे इस कविता को क्या पता आपको भी अपना बचपन याद आ जाये

आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन यादो मे

टेन्शन का जहाँ नाम नही ओर मारना मस्ती दिन भर
मम्मी रोज डाटती फिर भी पहुचना ड्रेस गन्दी करके घर
कल पैट दर्द, आज कान दर्द अब कल तो हे मामा के जाना
होमवर्क किया नही फिर खोजा रोज नया बहाना
इनटरवल मे खेलने के लिए पिरीयड मे ही पूरा लंच खा जाना
छुपअम छुपाई खेलने के वक्त बार बार थप्पा हम पर ही आना
पच्चीस पैसे की पोकेट मनी भी लगती थी जैसे अपार
आजकल तो कम ही पडते, चाहे जेब मे हो पच्चास हजार
आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन बातो मे

खरीदते हे नयी ड्रेस आज हम जब भी हो जाना बाजार
वो दिन ओर थे जब होता था नई ड्रेस के लिए दिवाली का इंतजार
ब्राड की इस दूनिया मे किसे चुने कौन है बेहतर
पर शादी मे सबसे अच्छा वो मम्मी के हाथ का बुना स्वाटर
चोबीस घंटे नोनस्टोप म्यूजीक सुनकर अब होते है बोर
आधे घंटे के चित्रहार का जब मजा ही था कुछ ओर
आज पूरा कार्टून नेटर्वक भी नही मन मेरा बहला सकता
वो सन्डे का दिन ओर मै हीमैन और मोगली की रहा तकता
केबल का जमाना नही था होता था मोहल्ले मे एक ही टीवी
इनवीटेशन आता था उस घर से जब भी वीसीआर पे लगती थी मूवी
चाचा चौधरी, बिल्लू और पिंकी से थी अपनी असली दोस्ती
कि छुटिया आते ही उनसे मिलने को लग जाती जैसे धूंध सी
आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन बातो मे

रोड पर बिजली का तार अब हमे जो गंदगी हे लगता
बनाते थे घरोंदा उस मिटृी मे जब पडोस मे कोई मकान था बनता
बारीश मे भिगने का मजा लेते थे दोस्तो के साथ
आज भिगने का डर इतना कि बारीश मे निकलता एक ही हाथ
वो पहली साईकल लाईफ की लगती थी हमको कितनी प्यारी
जो गर्व करते थे उस पर आज नही वो होने पर भी गाडी
वो छूट्‌टीयो मे जाना मामा के घर हर साल
ओर जुलाई मे स्कूल खुलने पर होना फिर से वो ही बूरा हाल
आज इनटरनेट पर पढ़ते है जोक्स किताबो मे मिलती कहानी
वो कहानी आज भी याद है जो सूनी थी दादा जी की जुबानी
मारते ठाहके थे पहले जहा उन छोटी छोटी बातो पे
आज तरसते है देखने को छोटी सी एक मूस्कान होठो पे
आओ तुम्हे मै लेकर चलू, उन भूली बीसरी यादो मे
इस भाग दोड से दूर कही, बचपन की उन बातो मे

आज सोचता हु मै ये कि लोट कर आ जाये वो दिन
क्यो बडा होता है इन्सान क्यो नही रहते हमेशा वो बचपन के दिन
ना कोई सोच ना कोई टेन्सन ना ही जीवन की कोई उलझन
सिम्पल सी एक लाईफ हो उमर चाहे फिर हो जाये पच्चपन
मिलेगा मोका वो दिन फिर जीने का अब की कहता है मेरा ये मन
सुना है मेने कि बुढापे मे फिर से लोट आता है बचपन

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